इसको कहते हैं खिलना।
इतना खिलना की
बिखरना सिर्फ खिलने का अगला,
सुखद चरण मात्र बनके रह जाए।
पूरा खिलने के बाद बिखरना अर्थहीन हो जाता है।
होने और ना होने के द्वंद के परे है संपूर्णता से होना।
जियो जीवन भर के, पूरा खिलो।
पीड़ारहित बिखरना तभी संभव है
जब आपने खिलने में सब कुछ अर्पित कर दिया हो।
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