वो जा रही है धीरे धीरे, बार बार पीछे मुड़के अपनी गुलाबी मुस्कराहट की छटा बिखेरती। दूर किसी नए क्षितिज पर अपने यौवन की सुनहरी किरणे बिखेरकर ओस की बूंदों को चमकते मोतियों में बदलने के लिए। शायद जो कुछ यहां अधूरा रह गया उसको पूरा करने के लिए। कुछ अधूरे सपने पूरे करने के लिए। कुछ नीरस आंखों में रोशनी भरने के लिए। कुछ उदास होठों पे शहद जैसी मीठी मुस्कान लाने के लिए। जाओ। तुम्हे रोकने की ख्वाहिश करना जीवन के एक नए आयाम को बाधित करने जैसा होगा। एक मीठी और हल्की सी उदास मुस्कराहट के साथ अलविदा। अच्छे से जाना और खूब खिलना। इतना खिलना की उसकी चमक में आने और जाने की द्वंदात्मक पीड़ा का औचित्य ही ना रहे।
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