कीचड़ भी कुछ और बनना चाहता है,
रेंगना चाहता है,
और बन जाता है केंचुआ।
सतत् सत्य है
बस एक निरंतर प्रवाह,
कुछ और होने और बनने का।
कुछ और होने और बनने का प्रयास
अच्छे बुरे की व्याख्या से परे है,
बस इंसानियत की एक ही कसौटी है,
कितने लोगों के हृदय में आपने रंग भरे,
कितनी आंखों के सुनहरे सपनों
को जिंदा रखने में मदद की।
बस इतना ही।
यही अस्तित्व आपसे चाहता है
एक इंसान के रूप में।
तारे तो ब्रह्मांड में अपने आप टूटते रहते हैं,
उनकी फिक्र छोड़ो।
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