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Monday, January 27, 2025

सतत इच्छा

 अप्रकट चाहे में प्रकट होंऊं 

और बन गई मिट्टी,

मिट्टी चाहे में ख़िलु 

और बन गई घास,

घास चाहे में बढ़ूँ 

और बन गई नरकट,

नरकट चाहे में छू लूं आकाश 

और लग गए उसको पंख 

बन गया नीलकंठ।


ब्रह्मांड में है 

बस एक सतत इच्छा होने की,

अप्रकट की प्रकट होने की।





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